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ग्राफ्टिंग तकनीक

इन तकनीकों से उत्पादन कर किसान कमा रहे हैं मोटा मुनाफा

इन तकनीकों से उत्पादन कर किसान कमा रहे हैं मोटा मुनाफा

पारंपरिक खेती करके किसान भाई केवल किसानों की आजीविका ही चलती थी। लेकिन, खेती की आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके किसानों की आमदनी काफी बढ़ती जा रही है। यह तकनीकें कृषकों का धन, समय और परिश्रम सब बचाती हैं। इसलिए किसानों को फिलहाल आधुनिक एवं उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करके उत्पादन करने की बेहद आवश्यकता है। आधुनिकता के वक्त में हमारी खेती भी अग्रिम होती जा रही है। क्योंकि विज्ञान द्वारा इतनी प्रगति कर ली गई है, कि फिलहाल नवीन तकनीकों से संसाधनों की बचत के साथ-साथ लाभ अर्जित करना भी सुगम हो गया है। इस कार्य में नवीन मशीनें एवं तकनीकें किसानों की हेल्पिंग हैंड की भूमिका अदा कर रही हैं।

ड्रिप सिंचाई तकनीक से करें उत्पादन

संपूर्ण विश्व जल की कमी से लड़ रहा है, इस वजह से किसानों को
सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों की तरफ प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस तरीके की तकनीकें जो कम सिंचाई में भरपूर पैदावार मिलती है। सूक्ष्म सिंचाई में ड्रिप एवं स्प्रिंकलर तकनीक शम्मिलित हैं। इन तकनीकों द्वारा सीधे फसल की जड़ों तक जल पहुंचता है। ड्रिप सिंचाई से 60 प्रतिशत जल की खपत कम होती है। फसल की पैदावार में भी काफी वृद्धि देखी जाती है।

वर्टिकल फार्मिंग के माध्यम से खेती करें

संपूर्ण विश्व में खेती का रकबा कम होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में बढ़ती जनसंख्या की खाद्य-आपूर्ति करना कठिन होता जा रहा है। यही कारण है, कि विश्वभर में वर्टिकल फार्मिंग को प्रोत्साहित किया जा रहा है। वर्टिकल फार्मिंग को खड़ी खेती भी कहा जाता है, जिसमें खेत की आवश्यकता नहीं, बल्कि घर की दीवार पर भी फसलें उत्पादित की जा सकती हैं। यह खेती करने का सफल तरीका माना जाता है। इसके अंतर्गत न्यूनतम भूमि में भी अधिक पौधे लगाए जा सकते हैं। इससे पैदावार भी ज्यादा होती है। यह भी पढ़ें: कम जमीन हो तो इजराईली तकनीक से करें खेती, होगी मोटी कमाई

शेड नेट फार्मिंग के जरिए करें खेती

जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाले दुष्परिणामों से खेती-किसानी में हानि होती जा रही है। बेमौसम बारिश,ओलावृष्टि, आंधी, सूखा और कीट-रोगों के संक्रमण से फसलों में काफी हद तक हानि हो रही है, जिसको कम करने हेतु किसानों को शेडनेट फार्मिंग से जोड़ा जा रहा है। पर्यावरण में होने वाले परिवर्तन का प्रभाव फसलों पर ना पड़े, इस वजह से ग्रीनहाउस, लो टनल, पॉलीहाउस जैसे संरक्षित ढांचे स्थापित किए जा रहे हैं। इनमें गैर मौसमिक बागवानी फसलें भी वक्त से पहले उत्पादित हो जाती हैं।

हाइड्रोपोनिक तकनीक के माध्यम से खेती करें

हाइड्रोपॉनिक तकनीक के अंतर्गत संपूर्ण कृषि जल पर ही निर्भर रहती है। इसमें मृदा का कोई कार्य नहीं है। आजकल विभिन्न विकसित देश हाइड्रोपॉनिक तकनीक से बागवानी यानी सब्जी-फलों का उत्पादन कर रहे हैं। भारत में भी शहरों में गार्डनिंग हेतु यह तकनीक काफी प्रसिद्ध हो रही है। इस तकनीक के माध्यम से खेत तैयार करने का कोई झंझट नहीं रहता है। एक पाइपनुमा ढांचे में पौधे स्थापित किए जाते हैं, जो पानी और पोषक तत्वों से बढ़ते हैं एवं स्वस्थ उत्पादन देते हैं।

ग्राफ्टिंग तकनीक के माध्यम से खेती करें

आजकल बीज समेत पौधे उगाने में बेहद वक्त लग जाता है, इस वजह से किसानों ने ग्राफ्टिड पौधों से खेती शुरू कर दी है। ग्राफ्टिंग तकनीक के अंतर्गत पौधे के तने द्वारा नवीन पौधा तैयार कर दिया जाता है। बीज से पौधा तैयार होने में काफी ज्यादा समय लगता है। ग्राफ्टिड पौधे कुछ ही दिनों के अंदर सब्जी, फल, फूल उत्पादित होकर तैयार हो जाते हैं। आईसीएआर-वाराणसी द्वारा ग्राफ्टिंग तकनीक द्वारा ऐसा पौधा विकसित किया है, जिस पर एक साथ आलू, बैंगन और टमाटर उगते हैं।
जानें ग्राफ्टिंग विधि से खेती करने से कितने फायदे होते हैं

जानें ग्राफ्टिंग विधि से खेती करने से कितने फायदे होते हैं

सामान्य तौर पर सबका मानना है, कि एक पेड़ पर एक ही किस्म का फल प्राप्त होता है। परंतु, क्या आपको मालूम है कि एक ऐसी तकनीक है, जिसके माध्यम से हम एक पेड़ से बहुत सारे फल अर्जित कर सकते हैं। 

आइए इस लेख में आगे हम इसके बारे में विस्तार से जानेंगे। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि कुछ लोगों को घरों में अथवा गार्डेन में विभिन्न प्रकार के पौधे लगाने का शौक होता है। 

गार्डेनिंग का शौक रखने वाले नर्सरी से विभिन्न किस्मों के पौधे लाकर अपने बगीचे में रोपते हैं। ऐसे शौकीन लोगों के लिए ग्राफ्टिंग तकनीक बेहद ही फायेदमंद साबित होती है। हालांकि, यह तकनीक कृषि क्षेत्र में भी काफी कारगर होती है।

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ग्राफ्टिंग एक ऐसी तकनीक है, जिसमें दो पौधों को जोड़ कर एक नया पौधा तैयार किया जाता है, जो मूल पौधे की तुलना में अधिक पैदावार प्रदान करता है। 

ग्राफ्टिंग विधि द्वारा तैयार किये गए पौधे की खासियत यह है कि, इसमें दोनों पौधों के गुण और विशेषताएं रहती हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि, ग्राफ्टिंग तकनीक का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के पौधों को तैयार करने के लिए किया जाता है। इस तकनीक का इस्तेमाल आम, जामुन, गुलाब, सेब एवं संतरे जैसे बहुत सारे बारहमासी पौधो पर किया जाता है।

ग्राफ्टिंग कितने प्रकार की होती है

  • एप्रोच ग्राफ्टिंग – Approach grafting
  • साइड ग्राफ्टिंग – Side grafting
  • स्प्लिस ग्राफ्टिंग – Splice grafting
  • सैडल ग्राफ्टिंग – Saddle grafting
  • फ्लैट ग्राफ्टिंग – Flat grafting
  • क्लेफ्ट ग्राफ्टिंग – Cleft grafting
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ग्राफ्टिंग किस प्रकार की जाती है

घर के गार्डेन में पौधों की ग्राफ्टिंग करना बेहद ही सुगम है। इसके साथ ही ग्राफ्टेड पौधे शीघ्रता से तैयार हो जाते हैं। गार्डन में पौधों की ग्राफ्टिंग करने के लिए जड़ वाले पौधे यानी कि रूट स्टॉक एवं सायन और कलम वाले पौधे को लिया जाता है। 

अब रूट स्टॉक और सायन को एक दूसरे से जोड़ने के लिए दोनों के सिरों को 1-5 इंच तक चाकू के माध्यम से तिरछा काटें। इसके उपरांत सायन के तिरछे कटे भाग को रूट भंडार के कटे हिस्से के ऊपर लगाते हैं। 

उसके पश्चात दोनों कटे हुए भागों को आपस में जोड़कर एक टेप की सहायता से बाँध देते हैं। इसके उपरांत रूट स्टॉक और सायन ऊतक आपस में जुड़ने लग जाते हैं। इस विधि के माध्यम से पौधों की उन्नति होनी चालू हो जाती है। इस तरह इस विधि द्वारा पौधों को विकसित कर सकते हैं।

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ग्राफ्टिंग तकनीक से खेती करने के लाभ

  • ग्राफ्टिंग तकनीक से तैयार पौधों का आकार बेशक छोटा हो परंतु, इनमें फल-फूल शीघ्र लगने लगते हैं।
  • ग्राफ्टिंग करने से पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाती है, इससे पौधों में रोग भी कम लग पाता है।
  • ग्राफ्टिंग से तैयार पौधों को अत्यधिक देखभाल की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
  • ग्राफ्टेड पौधों की गुणवत्ता एवं विशेषता बीजों द्वारा रोपे गए पौधों से बेहतर होती है।
  • ग्राफ्टिंग तकनीक का उपयोग करके हम फल तथा फूलों के पौधों को सहजता से तैयार कर सकते हैं।
  • ग्राफ्टिंग से तैयार पौधे से लगभग वर्षभर फूल अथवा फल अर्जित होते हैं।
  • ग्राफ्टिंग विधि से तैयार पौधों को घर पर गमले की मृदा में भी रोपा जा सकता है।